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Sardee ka mausam mein bachchon ke lie khatarnak hai ye beemaree, janen isake bare mein

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Sardee ka mausam mein bachchon ke lie khatarnak hai ye beemaree, janen isake bare mein

व्यापक रूप से चलाए जा रहे टीकाकरण द्वारा शिशुओं को सभी घातक बीमारियों से बचाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इस कारण बच्चे कई गंभीर रोगों से मुक्त भी होते जा रहे हैं लेकिन कुछ सालों से जिस तरह से डिप्थीरिया के रोगी सामने आ रहे हैं इससे सचेत होकर जागरूक होने की जरूरत है।

क्या है डिप्थीरिया-
डिप्थीरिया जिसे आम भाषा में गलघोटू भी कहा जाता है। गलाघोटू बीमारी प्राणघातक रोगों की श्रेणी में आता है। यह एक संक्रामक रोग है जो कि ज्यादातर तीन से दस साल के बच्चों को अपना शिकार बनाता है। यह रोग 'कोरनीबैक्टीरियम डिप्थेरी' नामक जीवाणु के कारण होता है।

जानें कब लगवाएं टीके -
जन्म के बाद जिन बच्चों को डीपीटी ( डिप्थीरिया-परटूसिस- टिटनस) के टीके नहीं लगाए जाते हैं, उन्हें ये रोग होने की आशंका ज्यादा होती है। ये टीके डेढ़, ढाई और साढ़े तीन महीने पर लगाए जाते हैं। फिर बुस्टर डोज डेढ़ और पांच साल में लगाई जाती है। डिप्थीरिया का रोग अक्टूबर से फरवरी में तेजी से फैलता है क्योंकि सर्दी का यह मौसम इसके जीवाणु के लिए अनुकूल होता है।

प्रारंभिक लक्षण -
डिप्थीरिया से पीड़ित होने पर बच्चे के गले में दर्द, बुखार, खाना खाने में तकलीफ या गर्दन में सूजन आ जाती है और गर्दन का आकार बहुत बढ़ जाता है, जिसे 'बुलनेक' कहा जाता है। इसके अलावा बच्चे को थकावट व बेचैनी होने लगती है, सांस लेने में तकलीफ होती है। गले के दोनों तरफ टॉन्सिल व इसके आस-पास गंदे भूरे रंग की परत जमा हो जाती है जिसे छेड़ने पर खून आने लगता है। कई बार नाक से गंदा पानी आने लगता है और नाक में पपड़ी जमने से नाक बंद रहने लगती है।

दुष्प्रभाव -
डिप्थीरिया रोग मुख्यत: शरीर के तीन भागों गले, नाक व स्वर यंत्र ( सांस नली का ऊपरी भाग )में होता है लेकिन शरीर के अन्य भाग भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। आमतौर पर हृदय व हमारे तंत्रिका तंत्र पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है।

दिल को नुकसान -
डिप्थीरिया का जीवाणु बच्चे के शरीर में पहुंचकर एक्सोटॉक्सिन बनाता है। ये एक्सोटॉक्सिन जब उसके हृदय पर हमला करते हैं तो बच्चे को मायोकार्डाइटिस हो जाता है, जिससे कई बार बच्चे की मौत भी हो जाती है।

दवा की उपलब्धता -
डिप्थीरिया के मामले रोजाना सामने आ रहे हैं। इन मामलों की संख्या ग्रामीण इलाकों में ज्यादा है। लेकिन परेशानी की बात यह है कि इस रोग की कारगर दवा 'एंटी डिफ्थेरिक सिरम' की उपलब्धता जिला स्तर तक न होना। यह दवा सिर्फ मेडिकल कॉलेजों में ही उपलब्ध है। तुरंत इलाज न मिल पाने के कारण कई मामलों में बच्चों की मौत हो जाती है।

तालू का लकवा -
डिप्थीरिया से पीड़ित कुछ बच्चों में कोमल तालू का पेरालाइसिस हो जाता है। इस स्थिति में कई बार ऐसा लगता है कि बच्चा नाक से बोल रहा है और कई बार स्थिति यह होती है कि रोगी जो कुछ तरल पदार्थ पीता है वह नाक से बाहर आ जाता है।

इलाज -
इस बीमारी का पता चलने पर बाकी बच्चों से पीड़ित बच्चे को दूर रखना चाहिए। इलाज के लिए बच्चे को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है जहां उसे आइसोलेशन वॉर्ड में रखा जाता है। इलाज के दौरान उसे पेनसिलिन दी जाती है। इसके अलावा 'एंटी डिफ्थेरिक सिरम' दी जाती है जो कि इस बीमारी के लिए कारगर दवा है।

ये हैं खतरे की कगार पर -
जिन बच्चों का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है, भीड़भाड़ या गंदगी वाले इलाकों में रहने वाले लोगों के बच्चों को इस बीमारी की आशंका रहती है।

शुरुआती 24 घंटे -
इस बीमारी के पता चलने पर शुरुआती 24 से 48 घंटे काफी महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान यदि बच्चे को सही इलाज मिल जाता है तो बच्चे की जान बचाई जा सकती है क्योंकि डिप्थीरिया शरीर में एक प्रकार का जहर बनाता है जो कि बच्चे के ब्लड के साथ मिलकर और अंगों को भी नुकसान पहुंचाना शुरू कर देता है।



Sardee ka mausam mein bachchon ke lie khatarnak hai ye beemaree, janen isake bare mein Sardee ka mausam mein bachchon ke lie khatarnak hai ye beemaree, janen isake bare mein Reviewed by health on November 18, 2018 Rating: 5

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