जन्म के समय जीभ मोटी व शरीर में सूजन थायरॉइड के लक्षण(Janm ke samay jeebh moti wa shareer me soojan ke lakshan)
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बदलली लाइफस्टाइल और आनुवांशिक कारणों से थायरॉइड की समस्या होती है। गर्दन में थायरॉइड ग्रंथि होती है। इससे टीएसएच और टी3 और टी 4 हार्मोन निकलते हैं। थायरॉइड ग्रंथि से टी4 हार्मोन ज्यादा निकलता है। इससे ही मेटाबोलिक एक्टिविटी और शरीर का विकास निर्भर करता है। इससे पाचन भी सही रहता है। एक साल तक के बच्चे की ग्रोथ थायरॉइड हार्मोन पर ही निर्भर करती है। इसकी कमी या अधिकता से गर्भस्थ शिशु का मस्तिष्क विकसित नहीं हो पाता है।
85 फीसदी बच्चों में समस्या आनुवांशिक
थायरॉक्सिन हार्मोन अधिक बनता है तो हाइपर थायरॉडिज्म और कम बनना हाइपोथायरॉडिज्म है। हाइपर थायरॉडिज्म शरीर में गांठें बनने, कई दवाइयों, ग्रेव डिजीज से होता है। हाइपोथाइरॉडिज्म ऑटो इम्यून डिजीज, आयोडीन की कमी, कुछ सर्जरी व कैंसर के इलाज के दौरान कम हार्मोन बनने की स्थिति है। 85 फीसदी बच्चों में यह समस्या आनुवांशिक होती है। हाइपर थायरॉडिज्म के मरीज में थॉयराइड हार्मोन अधिक बनता है। उन्हें आयोडीनयुक्त नमक की जगह सेंधा नमक (रॉक सॉल्ट) खाना चाहिए।
प्रेग्नेंसी में शुरू के तीन माह महत्त्वपूर्ण
प्रेग्रेंसी प्लान करने से पहले महिलाओं को थायरॉइड जांच करानी चाहिए। टीएसएच लेवल सही नहीं आने पर दवा लें। सामान्य होने के बाद प्रेग्रेंसी प्लान करें। प्रेग्रेंसी के तीन माह में बच्चे के दिमाग का विकास होता है। मां को थायरॉइड की समस्या होगी तो बच्चे का दिमाग विकसित नहीं होगा। प्रेग्रेंसी में शुरू के तीन माह तक नियमित थायरॉइड की जांच कराने की सलाह दी जाती है।
जन्म के 72 घंटों में जांच जरूरी
इसके लिए ब्लड टेस्ट कराते हैं। इसमें टीएसएच हार्मोन के साथ टी3 और टी4 की जांच होती है। बच्चे के जन्म के 48 से 72 घंटों में जांच कराते हैं। यदि टी 4 का लेवल 40 से अधिक आता है तो दवा शुरू कर देते हैं। एक सप्ताह बाद दोबारा जांच करते हैं। प्री मेच्योर बच्चे का सैंपल जन्म के 7-8 दिन बाद ही लेते हैं। बड़े लोगों को ब्लड शुगर की तरह इसकी भी नियमित जांच करानी चाहिए। टीएसएच लेवल सामान्य से ज्यादा है तो चिकित्सक की सलाह से इलाज कराएं। छह सप्ताह बाद जांच करानी चाहिए। यदि हार्मोन लेवल सामान्य हो गया है तो 3-6 माह पर भी करा सकते हैं। जांच के बाद डॉक्टर की सलाह से दवा बदल सकते हैं।
भोजन संतुलित व तय समय पर लें
आयुर्वेद में थायरॉइड को मेदोधातु रोग बताया गया है जो कि शरीर में अग्नि मंद होने पर होती है। यह बीमारी बंध और अबंध दो प्रकार की होती है। मरीज को व्यायाम और खानपान पर विशेष ध्यान देना चाहिए। गले से जुड़े व्यायाम करने चाहिए। संतुलित मात्रा में और तय समय पर भोजन करना चाहिए। न ज्यादा और न ही कम आहार लेना चाहिए।
आयुर्वेद में थायरॉइड को मेदोधातु रोग बताया गया है जो कि शरीर में अग्नि मंद होने पर होती है। यह बीमारी बंध और अबंध दो प्रकार की होती है। मरीज को व्यायाम और खानपान पर विशेष ध्यान देना चाहिए। गले से जुड़े व्यायाम करने चाहिए। संतुलित मात्रा में और तय समय पर भोजन करना चाहिए। न ज्यादा और न ही कम आहार लेना चाहिए।
उम्र के साथ बदलते बीमारी के लक्षण
-जन्म के समय बच्चे की जीभ का मोटा होना, जल्द न रोना, फीङ्क्षडग न कर पाना, ज्यादा सोना, पेट का मोटा होना, हर्निया, शरीर पर सूजन हो सकती है।
-कुछ समय बाद सिर का आकार बड़ा हो सकता है।
-जब बच्चे थोड़े बड़े हो जाते हैं तो हो सकता है कि उनकी ग्रोथ न हो या उम्र से पहले ही बड़े दिखने लगें।
-दिमाग का विकास नहीं हो पाना। ऐसे बच्चों में सिर के बाल भी बेहद कमजोर हो जाते हैं और ज्यादा झड़ते हैं।
-त्वचा का रुखापन भी इसका लक्षण है। बड़ों में टीएसएच लेवल बढऩे के कारण वजन कम होना, घबराहट, बेचैनी, हाथ-पैर कांपना, बार-बार टॉयलेट जाना, अधिक पसीना आना लक्षण हैं।
-शरीर में टीएसएच लेवल कम होने पर तेजी से वजन बढऩा, सुस्ती, नींद ज्यादा आना, थकान रहना, बाल गिरना, याद्दाश्त कम होती है।
-महिलाओं में अनियमित माहवारी, निसंतानता और कैंसर की समस्या भी हो सकती है।
जन्म के समय जीभ मोटी व शरीर में सूजन थायरॉइड के लक्षण(Janm ke samay jeebh moti wa shareer me soojan ke lakshan)
Reviewed by health
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November 05, 2018
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