In 12 Khas Niyamon Ko Apnane Se Shareer Banega Sawasth - इन 12 खास नियमों को अपनाने से शरीर बनेगा स्वस्थ
In 12 Khas Niyamon Ko Apnane Se Shareer Banega Sawasth |
In 12 Khas Niyamon Ko Apnane Se Shareer Banega Sawath - दैनिक जीवन उठने-बैठने के सही ढंग, आहार, आराम, ध्यान और विवेक की क्रियाओं पर आधारित होता है। इस आधार और स्रोत से यदि आप प्रार्थना नहीं करते या प्रेरणा नहीं लेते तो शारीरिक और मानसिक दोनों तरह का असंतुलन पैदा हो सकता है। आहार के माध्यम से भी सही मानवीय जीवन बिताया जा सकता है। आहार का विचार खासतौर पर अनुभव के आधार पर, भोजन के विज्ञान के आधार पर और अनुभव व सिद्धांत के मिश्रण के आधार पर तीन भागों विभाजित किया गया है।
अनुभव के आधार पर -
भोजन में शाकाहारी, मांसाहारी, कच्चा भोजन करने वाले, पका हुआ भोजन करने वाले, क्षारीय भोजन करने वाले, बहुत ज्यादा पानी पीने वाले, बहुत कम पानी पीने वाले, वो जो बहुत ज्यादा नमक खाते हैं, वो जो बहुत कम नमक खाते हैं और अन्य कई तरह के विचार हैं। इनमें से जो लोग दैनिक जीवन में पहली विधि से जीवन जीते हैं, उनमें से कोई भी आदर्श स्वास्थ्य प्राप्त नहीं कर पाता है। इनमें से ज्यादातर लोग अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर दूसरों को भी अपनी बात मानने के लिए बाध्य करते हैं।
भोजन में शाकाहारी, मांसाहारी, कच्चा भोजन करने वाले, पका हुआ भोजन करने वाले, क्षारीय भोजन करने वाले, बहुत ज्यादा पानी पीने वाले, बहुत कम पानी पीने वाले, वो जो बहुत ज्यादा नमक खाते हैं, वो जो बहुत कम नमक खाते हैं और अन्य कई तरह के विचार हैं। इनमें से जो लोग दैनिक जीवन में पहली विधि से जीवन जीते हैं, उनमें से कोई भी आदर्श स्वास्थ्य प्राप्त नहीं कर पाता है। इनमें से ज्यादातर लोग अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर दूसरों को भी अपनी बात मानने के लिए बाध्य करते हैं।
विज्ञान के आधार पर -
दूसरे तरीके के बारे में भी कई तरह के विचार हैं, हालांकि इनमें से ज्यादातर पशुओं पर हुए प्रयोगों पर आधारित है। इसमें पोषण से ज्यादा कैलोरी की चिंता है यानी इसमें शोधकर्ताओं की मुख्य रुचि भोजन में है, जैसे कि एक पशु के लिए आदर्श भोजन पर शोध करना हो। इस विधि को अपनाने वालों का खुद का अनुभव कम होता है। इसलिए इनमें से कई बीमार हो जाते हैं, जैसे अमरीकी या यूरोपियन के लोग। जंगली जानवर और आदिकालीन मानव ज्यादातर स्वस्थ थे, हालांकि उनके पालतू जानवरों का स्वास्थ्य कमजोर था। यह अंतर कहां से आया? वैज्ञानिक अध्ययन अच्छा है, लेकिन किसी सिद्धांत पर अंधविश्वास कहां तक सही है?
दूसरे तरीके के बारे में भी कई तरह के विचार हैं, हालांकि इनमें से ज्यादातर पशुओं पर हुए प्रयोगों पर आधारित है। इसमें पोषण से ज्यादा कैलोरी की चिंता है यानी इसमें शोधकर्ताओं की मुख्य रुचि भोजन में है, जैसे कि एक पशु के लिए आदर्श भोजन पर शोध करना हो। इस विधि को अपनाने वालों का खुद का अनुभव कम होता है। इसलिए इनमें से कई बीमार हो जाते हैं, जैसे अमरीकी या यूरोपियन के लोग। जंगली जानवर और आदिकालीन मानव ज्यादातर स्वस्थ थे, हालांकि उनके पालतू जानवरों का स्वास्थ्य कमजोर था। यह अंतर कहां से आया? वैज्ञानिक अध्ययन अच्छा है, लेकिन किसी सिद्धांत पर अंधविश्वास कहां तक सही है?
दोनों के आधार पर -
अनुभव और सिद्धांत के मिश्रण का तीसरा तरीका भी मुश्किल है। सिर्फ वैज्ञानिक तरीके और अनुभव से सीखना भी मुश्किल है क्योंकि जो चीज किसी एक के लिए सही है, वह जरूरी नहीं दूसरे के लिए भी सही हो। सवाल उठता है फिर बिल्कुल सही पोषण क्या है?
अनुभव और सिद्धांत के मिश्रण का तीसरा तरीका भी मुश्किल है। सिर्फ वैज्ञानिक तरीके और अनुभव से सीखना भी मुश्किल है क्योंकि जो चीज किसी एक के लिए सही है, वह जरूरी नहीं दूसरे के लिए भी सही हो। सवाल उठता है फिर बिल्कुल सही पोषण क्या है?
शरीर की सुनो और मानो -
योग कहता है, आपका शरीर सब जानता है। आपको अपने शरीर की बात सुननी होगी और उसे मानना होगा। यह सही है, लेकिन बहुत मुश्किल है। इस साधारण सच को पार करना ही मुश्किल है, क्योंकि लम्बे समय तक गलत आदत और गलत जानकारी से कई मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं। इससे शरीर की प्राकृतिक मांग कम हो जाती है। ऐसे में व्रत या भोजन की मात्रा कम करना ही एकमात्र उपाय रह जाता है ताकि शरीर सही मांग करने लगे। यदि आप कुछ समय सिर्फ भूरे चावल या सिर्फ गेहूं की रोटी या मिश्रित मोटे अनाज का सेवन करें और इनके साथ पत्तियों या जड़ वाली सब्जियों का इस्तेमाल करें तो भोजन की मात्रा कम हो जाएगी और आप शारीरिक व मानसिक रूप से खुद को हल्का महसूस करेंगे।
योग कहता है, आपका शरीर सब जानता है। आपको अपने शरीर की बात सुननी होगी और उसे मानना होगा। यह सही है, लेकिन बहुत मुश्किल है। इस साधारण सच को पार करना ही मुश्किल है, क्योंकि लम्बे समय तक गलत आदत और गलत जानकारी से कई मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं। इससे शरीर की प्राकृतिक मांग कम हो जाती है। ऐसे में व्रत या भोजन की मात्रा कम करना ही एकमात्र उपाय रह जाता है ताकि शरीर सही मांग करने लगे। यदि आप कुछ समय सिर्फ भूरे चावल या सिर्फ गेहूं की रोटी या मिश्रित मोटे अनाज का सेवन करें और इनके साथ पत्तियों या जड़ वाली सब्जियों का इस्तेमाल करें तो भोजन की मात्रा कम हो जाएगी और आप शारीरिक व मानसिक रूप से खुद को हल्का महसूस करेंगे।
जानवर जानते हैं कितना खाना है -
जानवरों को तो प्राकृतिक भूख लगती है, वे शरीर की भोजन की मांग का पूरा ध्यान रखते हैं, लेकिन जरूरत से कम खाते हैं। जानवरों को जब लगता है कि पेट या शरीर में कुछ गड़बड़ है तो वे उपवास कर जाते हैं। यहां तक कि ***** जो बहुत ज्यादा खाने वाले जानवर लगते हैं, वे भी पेट को पूरा नहीं भरते। जबकि मानव यदि स्वस्थ नहीं है तो भी खाने की सोचता है और ज्यादा खा जाता है। जबकि आप इसका उलट करें और कम खाएं या नहीं खाएं तो आपके शरीर के अंग जल्द ही सामान्य स्थिति में आ जाएंगे। शरीर अपनी जरूरत से ज्यादा मांग नहीं करता और इसीलिए इसे जरूरत से ज्यादा दिया जाए तो वह उसे स्वीकार भी नहीं करता।
जानवरों को तो प्राकृतिक भूख लगती है, वे शरीर की भोजन की मांग का पूरा ध्यान रखते हैं, लेकिन जरूरत से कम खाते हैं। जानवरों को जब लगता है कि पेट या शरीर में कुछ गड़बड़ है तो वे उपवास कर जाते हैं। यहां तक कि ***** जो बहुत ज्यादा खाने वाले जानवर लगते हैं, वे भी पेट को पूरा नहीं भरते। जबकि मानव यदि स्वस्थ नहीं है तो भी खाने की सोचता है और ज्यादा खा जाता है। जबकि आप इसका उलट करें और कम खाएं या नहीं खाएं तो आपके शरीर के अंग जल्द ही सामान्य स्थिति में आ जाएंगे। शरीर अपनी जरूरत से ज्यादा मांग नहीं करता और इसीलिए इसे जरूरत से ज्यादा दिया जाए तो वह उसे स्वीकार भी नहीं करता।
पेट साफ तो मन स्वस्थ -
जब पाचन या ग्रहण करने की क्षमता सही हो, लेकिन इसे निष्प्रभावी करने की क्षमता कम हो तो बवासीर, पेट में जलन, अल्सर जैसी समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। जिस तरह से हर आदमी का अपना व्यक्तित्व होता है, उसी तरह हर बैक्टीरिया का अपना व्यक्तित्व होता है। ऐसे में उन्हें उपयुक्त वातावरण या मानव शरीर में उनके लिए उपयुक्त भोजन नहीं मिले तो वे जिंदा नहीं रह सकते। यदि आप आनंद से खा पा रहे हैं, गहरी नींद ले पा रहे और आपका पेट बिल्कुल साफ हो रहा है तो मान लीजिए आप शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं और अपनी ताकत बढ़ा सकते हैं।
जब पाचन या ग्रहण करने की क्षमता सही हो, लेकिन इसे निष्प्रभावी करने की क्षमता कम हो तो बवासीर, पेट में जलन, अल्सर जैसी समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। जिस तरह से हर आदमी का अपना व्यक्तित्व होता है, उसी तरह हर बैक्टीरिया का अपना व्यक्तित्व होता है। ऐसे में उन्हें उपयुक्त वातावरण या मानव शरीर में उनके लिए उपयुक्त भोजन नहीं मिले तो वे जिंदा नहीं रह सकते। यदि आप आनंद से खा पा रहे हैं, गहरी नींद ले पा रहे और आपका पेट बिल्कुल साफ हो रहा है तो मान लीजिए आप शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं और अपनी ताकत बढ़ा सकते हैं।
अपच होने पर शरीर देता है संकेत -
ऐसा नहीं कि भूख नहीं होने पर शरीर हमें बताता नहीं है, शरीर हमें संकेत देता है। हम मानते हैं कि पोषण पर्याप्त है, आपूर्ति में असंतुलन होने के कारण आहार में सही तत्वों की अधिकता या कमी होना, खराब स्थितियां, भावनात्मक परेशानियां, भोजन के कारण होने वाली थकान, किडनी और आंतों का ठीक से काम नहीं करना, रक्त का साफ नहीं होना या इसमेंं टॉक्सिन्स होना, इनके अलावा यदि उबकाई या मितली आ रही है तो मानना चाहिए कि अब शरीर से टॉक्सिन निकालने का समय आ गया है। भूख नहीं लगने का एक कारण विटामिन ए और बी2 की कमी भी हो सकता है। यदि आप खाना चाहते हैं और खा नहीं पा रहे तो मान लीजिए कि आप मेहनत कम कर रहे हैं, शरीर में ऊर्जा व पानी की कमी हो गई है। आपके हार्मोन सिस्टम में भी गड़बड़ी हो सकती है।
ऐसा नहीं कि भूख नहीं होने पर शरीर हमें बताता नहीं है, शरीर हमें संकेत देता है। हम मानते हैं कि पोषण पर्याप्त है, आपूर्ति में असंतुलन होने के कारण आहार में सही तत्वों की अधिकता या कमी होना, खराब स्थितियां, भावनात्मक परेशानियां, भोजन के कारण होने वाली थकान, किडनी और आंतों का ठीक से काम नहीं करना, रक्त का साफ नहीं होना या इसमेंं टॉक्सिन्स होना, इनके अलावा यदि उबकाई या मितली आ रही है तो मानना चाहिए कि अब शरीर से टॉक्सिन निकालने का समय आ गया है। भूख नहीं लगने का एक कारण विटामिन ए और बी2 की कमी भी हो सकता है। यदि आप खाना चाहते हैं और खा नहीं पा रहे तो मान लीजिए कि आप मेहनत कम कर रहे हैं, शरीर में ऊर्जा व पानी की कमी हो गई है। आपके हार्मोन सिस्टम में भी गड़बड़ी हो सकती है।
दिमाग तंदुरुस्त -
स्वाद को संतुलित रखना भी शरीर व दिमाग के लिए अच्छा रहता है और हमें जहां तक हो सके ज्यादा से ज्यादा विभिन्न तरह का भोजन करना चाहिए, इससे हमारे दिमाग के विकास में सहायता मिलती है। जो व्यक्ति स्थाई रूप से ही एक चीज खाता है, वह उसका आदी हो जाता है और इससे असंतुलन बनता है। असंतुलन से व्यवहार और शारीरिक क्रिया भी असंतुलित हो सकती है। आदिमानव शारीरिक रूप से स्वस्थ था लेकिन उसका दिमाग विकसित नहीं था। जब दो लोगों की रूचियां अलग-अलग हो तो दिल मिलना मुश्किल होता है। वैवाहिक जीवन में भी ऐसा होता है कि पति और पत्नी की खानपान के मामले रूचियां और स्वाद अलग होते हैं, लेकिन ऐसे में दूसरे की रूचि का आदर व सम्मान करना जरूरी है और उसे उसी सम्मान के साथ अपनाना भी चाहिए। हम ऐसा नहीं करते तो अनजाने मेंं ही खुद के लिए विरोधी खड़ा कर लेते हैं।
स्वाद को संतुलित रखना भी शरीर व दिमाग के लिए अच्छा रहता है और हमें जहां तक हो सके ज्यादा से ज्यादा विभिन्न तरह का भोजन करना चाहिए, इससे हमारे दिमाग के विकास में सहायता मिलती है। जो व्यक्ति स्थाई रूप से ही एक चीज खाता है, वह उसका आदी हो जाता है और इससे असंतुलन बनता है। असंतुलन से व्यवहार और शारीरिक क्रिया भी असंतुलित हो सकती है। आदिमानव शारीरिक रूप से स्वस्थ था लेकिन उसका दिमाग विकसित नहीं था। जब दो लोगों की रूचियां अलग-अलग हो तो दिल मिलना मुश्किल होता है। वैवाहिक जीवन में भी ऐसा होता है कि पति और पत्नी की खानपान के मामले रूचियां और स्वाद अलग होते हैं, लेकिन ऐसे में दूसरे की रूचि का आदर व सम्मान करना जरूरी है और उसे उसी सम्मान के साथ अपनाना भी चाहिए। हम ऐसा नहीं करते तो अनजाने मेंं ही खुद के लिए विरोधी खड़ा कर लेते हैं।
भोजन से नुकसान भी -
खुद को भोजन कराने की हमारी क्षमता भोजन व हमारी क्षमता के बीच सामंजस्य की क्रिया है। यदि यह क्षमता कम है तो फिर भोजन नुकसानदेह बन जाता है। शरीर को जरूरत नहीं है और फिर भी खा रहे हैं तो यह खाना आपके लिए हानिकारक हो जाएगा। ऐसे में कम खाएं।
खुद को भोजन कराने की हमारी क्षमता भोजन व हमारी क्षमता के बीच सामंजस्य की क्रिया है। यदि यह क्षमता कम है तो फिर भोजन नुकसानदेह बन जाता है। शरीर को जरूरत नहीं है और फिर भी खा रहे हैं तो यह खाना आपके लिए हानिकारक हो जाएगा। ऐसे में कम खाएं।
स्वस्थ रहने के लिए कई किस्म खाएं -
शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने और अच्छे दिमाग के लिए हमें कई किस्म का खाना लेना चाहिए, लेकिन ऐसा करते समय हमें ज्यादा खाने के नुकसान का ध्यान रखना चाहिए। हमारे पूर्वजोंं ने भोजन की तलाश के लिए काफी मेहनत की है। एक सामान्य जीवन विकसित किया और भोजन को सुरक्षित रखने की तकनीकें विकसित की। हमारे पूर्वजों से हमें भोजन नहीं मिल पाने का डर और कुछ गलत सूचनाओं के कारण हम भोजन के प्रति गलत तरह का दृष्टिकोण रखने लगे हैं। इसमें सबसे बड़ी गलती यह है कि हम भोजन के मामले में जरूरत से कम खाने की शरीर की मांग पर ध्यान नहीं देते।
शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने और अच्छे दिमाग के लिए हमें कई किस्म का खाना लेना चाहिए, लेकिन ऐसा करते समय हमें ज्यादा खाने के नुकसान का ध्यान रखना चाहिए। हमारे पूर्वजोंं ने भोजन की तलाश के लिए काफी मेहनत की है। एक सामान्य जीवन विकसित किया और भोजन को सुरक्षित रखने की तकनीकें विकसित की। हमारे पूर्वजों से हमें भोजन नहीं मिल पाने का डर और कुछ गलत सूचनाओं के कारण हम भोजन के प्रति गलत तरह का दृष्टिकोण रखने लगे हैं। इसमें सबसे बड़ी गलती यह है कि हम भोजन के मामले में जरूरत से कम खाने की शरीर की मांग पर ध्यान नहीं देते।
ज्यादा खाना यानी पेट के रोग -
यदि कोई यह सोचता है कि वह जो भी खा रहा है, उसका शरीर उसे अपना लेगा तो यह उसकी गलती है। जरूरत से ज्यादा पोषण हमारा शरीर नहीं चाहता और यह बाहर निकल जाता है। यदि हमारी शारीरिक और मानसिक स्थिति ठीक है तो हमें यह अधिक पोषण निकालने के लिए हमें बस ज्यादा मेहनत करनी होती है। लेकिन आदतन ज्यादा खाने से यदि हमारा मेटाबॉलिज्म कम है तो कई परेशानियां हो सकती हैं। इसके चलते पेट की पाचन क्षमता कम हो सकती है। ऐसे में जरूरी है कि अंगों को उपवास, व्रत या कम खाकर आराम दिया जाए। कई लोग मानते हैं कि ऐसे में भी उन्हें खाने की जरूरत है।
यदि कोई यह सोचता है कि वह जो भी खा रहा है, उसका शरीर उसे अपना लेगा तो यह उसकी गलती है। जरूरत से ज्यादा पोषण हमारा शरीर नहीं चाहता और यह बाहर निकल जाता है। यदि हमारी शारीरिक और मानसिक स्थिति ठीक है तो हमें यह अधिक पोषण निकालने के लिए हमें बस ज्यादा मेहनत करनी होती है। लेकिन आदतन ज्यादा खाने से यदि हमारा मेटाबॉलिज्म कम है तो कई परेशानियां हो सकती हैं। इसके चलते पेट की पाचन क्षमता कम हो सकती है। ऐसे में जरूरी है कि अंगों को उपवास, व्रत या कम खाकर आराम दिया जाए। कई लोग मानते हैं कि ऐसे में भी उन्हें खाने की जरूरत है।
शरीर को आराम भी दें -
हमारा शरीर सही मांग करे, इसके लिए जरूरी है कि हम शरीर और इसके अंगों को कुछ आराम करने दें। यदि भोजन हमारी स्थितियों के अनुकूल नहीं है तो भी हमारा शरीर इसे ग्रहण नहीं करेगा। हमें व्रत या उपवास करना चाहिए या भोजन की मात्रा कम कर देनी चाहिए, इससे हमें हमारे शरीर की वास्तविक जरूरत का पता लग सकेगा यानी हमें हमारी पुरानी आदत छोड़कर शरीर को इसकी प्राकृतिक मांग विकसित करने का मौका देना चाहिए। इसके साथ ही हमें आहार के बारे में वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन भी करना चाहिए। यह पता करना चाहिए कि आपके शरीर के लिए कैसा भोजन चाहिए, इसे किस तरह पकाया जाना चाहिए। यदि हमारी रिसर्च सही हो गई तो हम बहुत कम मात्रा में भोजन करके भी स्वस्थ रह सकते हैं।
हमारा शरीर सही मांग करे, इसके लिए जरूरी है कि हम शरीर और इसके अंगों को कुछ आराम करने दें। यदि भोजन हमारी स्थितियों के अनुकूल नहीं है तो भी हमारा शरीर इसे ग्रहण नहीं करेगा। हमें व्रत या उपवास करना चाहिए या भोजन की मात्रा कम कर देनी चाहिए, इससे हमें हमारे शरीर की वास्तविक जरूरत का पता लग सकेगा यानी हमें हमारी पुरानी आदत छोड़कर शरीर को इसकी प्राकृतिक मांग विकसित करने का मौका देना चाहिए। इसके साथ ही हमें आहार के बारे में वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन भी करना चाहिए। यह पता करना चाहिए कि आपके शरीर के लिए कैसा भोजन चाहिए, इसे किस तरह पकाया जाना चाहिए। यदि हमारी रिसर्च सही हो गई तो हम बहुत कम मात्रा में भोजन करके भी स्वस्थ रह सकते हैं।
In 12 Khas Niyamon Ko Apnane Se Shareer Banega Sawasth - इन 12 खास नियमों को अपनाने से शरीर बनेगा स्वस्थ
Reviewed by health
on
January 24, 2019
Rating:
No comments:
Post a Comment