Blue Baby Lakshanon Ki Sigr Pahchan Zaruri |
दिल में छेदमुख्यत: दो किस्म के हृदय रोग होते हैं। एक वे जिसमें बच्चे के शरीर का रंग नीला पड़ने लगता है और दूसरा जिसमें उसके रंग में बदलाव नहीं होता। वे सभी स्थितियां जिनमें शिशु नीला पड़ जाता है, उनमें सर्जिकल इलाज की जरूरत होती है। वहीं दूसरी स्थिति में बैलून एंजियोप्लास्टी या डिवाइस क्लोजर से भी ठीक किया जा सकता है। दिल में छेद होना सबसे सामान्य है। बड़ी विकृतियों में सर्जरी की जरूरत पड़ती है। दिल में पृथक छेद वेंट्रीक्यूलर (दिल के निचले हिस्से में मौजूद कोष्ठक) या एट्रियल (दिल के ऊपरी हिस्से में मौजूद प्रकोष्ठ) हो सकता है जिसके लिए इलाज की जरूरत पड़ती है। जैसे वयस्कों में स्टंट लगाकर उपचार किया जाता है उसी तरह शिशुओं मे इस समस्या को खत्म करने के लिए एंजियोप्लास्टी तकनीक का प्रयोग किया जाता है।
यह स्थिति है घातक
- बच्चे का बहुत ज्यादा नीला पड़ जाना।
- बच्चे का ब्लड प्रेशर बहुत ज्यादा कम होना।
- लगातार तेज सांस चढ़ना या फिर सांस लेने में परेशानी होना।
यह बहुत ही खतरनाक बीमारी है जो जीवन में खतरे का संकेत देती है। यह एक दिल की इलेक्ट्रिकल समस्या है। छोटा बच्चा अपनी समस्या को बताने में सक्षम नहीं होता है। इसलिए माता-पिता को अपने बच्चे की असहजता से जुड़े लक्षणों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए।
ट्यूब की अदला-बदली
बच्चों के दिल में छेद से जुड़ी ही एक समस्या है निचले चौबर (प्रकोष्ठ) में छेद होना जिसे वेंट्रीक्यूलर सैप्टल डिफेक्ट (वी.एस.डी.) कहते हैं। ऊपरी एट्रियल सैप्टल डिफेक्ट (ए.एस.डी.) और निचले वी.एस.डी के बीच मौजूद दीवार लाल रक्त को नीले रक्त से अलग करती है। छेद की वजह से फेफड़ों में रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है। इससे बच्चे को छाती में संक्रमण ज्यादा होता है, बच्चे का वजन बढऩा परेशानी बन जाता है। यदि दिल में छेद होने के साथ फेफड़ों की ओर होने वाले रक्त प्रवाह में रुकावट हो तो यह बच्चे के नीला पडऩे की दूसरी आम स्थिति है। इन परिस्थितियों में सर्जरी की आवश्यकता होती है। अन्य विकार जिनमें बच्चा नीला पड़ जाता है, उसमें फेफड़ों से ऑक्सीजन युक्त खून नीले रक्त में बदलने लगता है या दिल से लाल व नीला रक्त लेकर आने वाली ट्यूब की अदला-बदली हो जाती है।
नजर आने वाले लक्षण
- बच्चा फीड लेने में बहुत देर लगाए। फीड लेते हुए बच्चे को पसीना आए या फीडिंग के बावजूद उसका वजन न बढ़े।
- तेजी से सांस लेना।
- कभी-कभार बच्चा एकदम से नहीं बल्कि धीरे-धीरे नीला पडऩे लगता है और उस स्थिति में पहुंच जाता है कि किसी तरह की कोई हरकत भी नहीं करता।
- कभी-कभी बच्चे की हालत गंभीर हो जाती है। यह नवजात आयु वर्ग के समूह में अधिक होता है।
प्रेग्नेंसी में ही जांच
वर्तमान टेक्नोलॉजी से गर्भस्थ शिशु के हृदय रोग की जांच गर्भावस्था के 18वें हफ्ते में की जा सकती है। इस टेस्ट को फेटल ईको कार्डियोग्राम कहते हैं। इस टेस्ट के लिए विशेष हार्ट अल्ट्रासाउंड मशीनें इस्तेमाल की जाती हैं और इसमें एस.टी.आई.सी. या फेटल नेविगेशन जैसे हाईटेक फीचर होते हैं। एक बार डायग्नोस होने के बाद परिवार को भावी इलाज के लिए परामर्श दिया जाता है और अगर स्थिति ऐसी हो कि इलाज में मुश्किल आए तो उस हिसाब से प्रेग्नेंसी को लेकर उचित सलाह दी जाती है।
Blue Baby Lakshanon Ki Sigr Pahchan Zaruri - ब्लू बेबी लक्षणों की शीघ्र पहचान जरूरी
Reviewed by health
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January 20, 2019
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