![]() |
Bachche Ko Dar Va Tanav Se Door Rakkhein |
ऐसा 3-5 साल की उम्र में हो सकता है
हकलाहट (स्टैमरिंग) पूरी तरह से मनोवैज्ञानिक समस्या है। बच्चा जब पहली बार स्कूल जाता है तो वह माता-पिता से दूरी के कारण डरने लगता है। असमंजस की स्थिति में उसके चेहरे की मसल्स टाइट होने लगती हैं। ऐसे में बच्चा शब्दों को अटक-अटक कर और लंबा खींचकर बोलने लगता है। धीरे-धीरे यह उसकी आदत बन जाती है। तीन से पांच साल की उम्र के बच्चों में यह समस्या हो सकती है।
डॉक्टरों के मुताबिक ऐसे बच्चे शुरुआती दौर से ही ज्यादा भावुक होते हैं। जिन बच्चों में यह दोष पाया जाता है उनमें से पांच फीसदी बिना किसी मदद या इलाज के अपने आप ही ठीक बोलने लगते हैं।
हकलाहट बच्चे की भाषा पर अच्छी पकड़ न होने से भी होती है। कई बार डर से भी बोलने की क्षमता प्रभावित होती है। 9-12 साल की उम्र तक बच्चों में यह दोष कम होने लगता है।
पैरेन्ट्स क्या करें?
- बच्चे को डर व तनाव से दूर रखें।
- अगर बच्चा हकलाता है तो उसका मजाक न उड़ाएं।
- ज्यादा से ज्यादा बोलने के लिए बच्चे को प्रेरित करें।
- बच्चे की मौजूदगी में उसके दोष के बारे में चर्चा करने से बचें।
- बच्चा कोई वाक्य बोलते वक्त अटकता हो तो धैर्य से उसकी बात सुनें और उसे ही अपना वाक्य पूरा करने दें।
- बच्चे को कहानी, कविता, गीत आदि सुनाने के लिए प्रेरित करें व उसकी प्रशंसा कर उसे प्रोत्साहन दें।
अभ्यास है इलाज
इस दोष को ठीक करने की 'प्रो-लोंगेशन तकनीक' काफी कठिन है क्योंकि यह बच्चे की प्रैक्टिस पर निर्भर करती है। पीडि़त बच्चे को सिंग-सॉन्ग तरीके से बात करने का अभ्यास कराया जाता है। उन्हीं शब्दों या अक्षरों को बार-बार बुलवाया जाता है जिन्हें बोलने में बच्चे को परेशानी होती है। सामान्यत: 2-3 महीने में बच्चा ठीक हो सकता है।
स्पीच थैरेपिस्ट बच्चे की मन:स्थिति (डर, शर्माना, असहज होना आदि) जानने के बाद उसे तनावमुक्त रखने का प्रयास करते हैं। इसके बाद निरंतर अभ्यास के बाद बच्चे के उच्चारण में सुधार होने पर उसके आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
Bachche Ko Dar Va Tanav Se Door Rakkhein - बच्चे को डर व तनाव से दूर रखें
Reviewed by health
on
January 08, 2019
Rating:
No comments:
Post a Comment